मैं ठहरा माटी का गुड्डा, ये दुनिया बजरिया बाबा
कड़ी धूप में दिन भर पकना, बारिश बारिश बचना बाबा
तुम तो रिश्तों के दरिया को, कितनी पीछे छोड़े आए
फिर आखिर क्यों सब बच्चों को बेटा-बेटी कहना बाबा
अपनी बोलो तुमने आखिर, किसके कितने पत्थर खाए
हमको तो फल देकर भी है पत्थर-पत्थर खाना बाबा
रिश्तों को तो तुम कहते हो धूप-हवा-जल जैसा भ्रामक
मेरी इस बच्ची को आखिर, समझाऊं क्या कहना बाबा
मेला खत्म हुआ तो देखा, है दुकाने उजड़ी सी
फिर काहे को दुनिया को है मेला-मेला कहना बाबा
मोहित
oye i wish u had written this a bit earlier , it could have been my playback song…i got it written in bhojpuri from someone and its folk kinds…but this is beautiful… 🙂
अतिउत्तम.. लाजवाब.. दिलकश..
@Deepti — We have lot of time to work together again mate… next time when we launch our first album ok?? lol
@ Abyaz — Thanks bhai
too good
thanks